वस्ल - मिलाप
नवाज़िश - कृपा, मेहरबानी
मयस्सर - उपलब्ध होना
सहर - प्रातःकाल, सवेरा
मोजिजा - अलौकिक चमत्कार
वस्ल - मिलाप
नवाज़िश - कृपा, मेहरबानी
मयस्सर - उपलब्ध होना
सहर - प्रातःकाल, सवेरा
मोजिजा - अलौकिक चमत्कार
नागवार
गुजरती हैं हमारी तो
खिदमते भी
उनकी
तो गालियां भी दुवाओ सी
लगती हैं
हम तो जान भी
दे तो परवाह नही
उनकी
इक आह पे भी
जान निकलती है
क्या
करे हम मजबूर है
अपनी आदत से
नज़रे
फिर भी उनकी परायी सी लगती है
मुकम्मल
होते सपनो के दरमियान
अब तो हर वाह
भी शिकायत सी लगती है
तू ही शिव माहेश्वरी
तू महिषासुरमर्दिनि
तू करली काल कृपालिनी
मुक्त करे जो सर्व बंधन से
तू ही है वो भवमोचिनी
हे अनंतकाल की भवप्रीता
तू चंड मुंड विनाशिनी
हे सर्वज्ञाता अहंकारा
तू ही दुर्गा विंध्यवासिनी
हे देवमाता दक्षकन्या
हे भद्रकाली परमेश्वरी
जिससे बढ़कर भव्य नहीं
तू है अभव्या सुरसुन्दरी
कुछ कमी सी है
इश्क़ है मुझे तुझसे ऐ जिंदगी कम है तू किसी से रश्क के लिए ना दे रब मुझे दौलत या शोहरत सुकूने जिंदगी चाहिए मुझे अपने लिए क्या मांगू किसी की...